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Showing posts from June, 2020

दैवज्ञ संत श्री नरहरि सोनार जी - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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विश्वकर्मा_दैवज्ञ_संत_श्री_नरहरि_सोनार_जी  नरहरी सोनार नामक महान विट्ठल भक्त का जन्म सं .१३१३ में श्री पंढरपुर धाम में हुआ था। पंढरपुर में भगवान् श्रीकृष्ण के साथ साथ शिवोपासना भी प्राचीन काल से चली आ रही है। नरहरी सोनार के घर भगवान् शिव की उपासना परंपरा से चली आ रही थी। उनके पिता महान शिव भक्त थे, रोज शिवलिंग को अभिषेक करके बिल्वपत्र अर्पण करने के बाद ही वे काम पर जाते। चिदानंदरूप: शिवोहं शिवोहं यह उनकी शिव उपासना की भावना थी और भगवान् शिव की कृपा से ही उनके घर नरहरी का जन्म हुआ था। समय आने पर नरहरी का जनेऊ संस्कार हुआ। मल्लिकार्जुन मंदिर में जाकर भगवान् की पूजा करने में एवं स्तोत्र पाठ करने में उन्हें बहुत आनंद आता था। बाल्यकाल।में उन्हें अनेक शिव स्तोत्र कंठस्थ थे धीरे धीरे इनकी शिव उपासना बढ़ गयी परंतु नरहरी जी केवल भगवान् शिव को ही मानते, श्री कृष्ण के दर्शन के लिए कभी न जाते। पंढरपुर में भगवान् विट्ठल के लाडले संत श्री नामदेव का कीर्तन नित्यप्रति हुआ करता था। सब गाँव वासी वह आया करते पर नरहरी जी कभी न आते। एक दिन मल्लिकार्जुन भगवान् के मंदिर से निकलते नरहरी माता पिता क

साहित्य रत्न श्री परमानंद पांचाल जी

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*श्री परमानंद पांचाल* *साहित्य रत्न* श्री डॉ. परमानंद पांचाल जी हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक, भाषाविद् एवं समीक्षक के साथ-साथ दक्खिनी हिंदी के अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त विद्वान हैं। पेशे से शिक्षक डॉ. पांचाल जी ने भारत सरकार के कई उच्‍च पदों सहित निदेशक (राजभाषा) का पद भी सुशोभित किया है।  डॉ. परमानंद पांचाल जी का जन्म 4 जुलाई, 1930 को हुआ। *कार्यक्षेत्र* हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, खोज, पर्यटन तथा यात्रा-साहित्‍य को समृद्ध बनाने और दक्खिनी हिंदी के अनेक अज्ञात रचनाकारों की कृतियों को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ. पांचाल को है। डॉ. पांचाल के 24 ग्रंथ और 400 से अधिक आलेख प्रकाशित हैं। ‘हिंदी के मुस्लिम साहित्‍यकार’, ‘दक्खिनी हिंदी की पारिभाषिक शब्‍दावली’ और ‘दक्खिनी-हिंदी : विकास और इतिहास’ इनकी प्रमुख पुस्‍तकें हैं।  इन्‍होंने उर्दू से हिंदी में अनुवाद कार्य और अनेक उच्‍च शिक्षण संस्‍थाओं में हिंदी और दक्खिनी हिंदी पर महत्‍वपूर्ण व्‍याख्‍यान भी दिए हैं। आप भारत सरकार की केंद्रीय हिंदी समिति एवं अन्‍य कई मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों के सदस्‍य भी रहे हैं। *सम्मान एवं पु

विश्वकर्मेश्र्वर महादेव मंदिर (वाराणसी) - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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*विश्वकर्मेश्वर महादेव मंदिर  - वाराणसी* *(स्कंद महापुराण - काशी खंड अ. 86/35, 53, 57)* बहुत समय पहले,त्वष्टा नाम का एक शिष्य था जो अपनी शिक्षा के लिए गुरुकुल में रहते थे । जैसा कि अभ्यास पूर्ण हुआ था , षिक्षा मे छात्र को घरेलू कामों को करने और अपने गुरु जी , गुरु पत्नी और उनके परिवार की सेवा करने की आवश्यकता थी।त्वष्टा अपनी कला अभ्यास और तमाम विद्याओ मे निपुण हो चुके थे।  एक बार गुरु जी ने त्वष्टा को एक आश्रय और पणॅशाला का निर्माण करने के लिए कहा जो कभी भी पुराना न हो और उसका नाश न हो सके । गुरु जी की पत्नी ने उसे बिना किसी कपड़े का उपयोग किए उसके लिए एक पोशाक सिलाई करने के लिए कहा। पोशाक न तो बड़ी होनी चाहिए और न ही छोटी। गुरुजी के पुत्र ने त्वष्टा (विश्वकर्मा) को एक पादुका बनाने के लिए कहा, जो चमड़े से बना न हो और इसे पहनने वाले के लिए पानी में बहुत तेज दौड़ना सुविधाजनक हो। गुरुजी की पुत्री ने उनसे एक जोड़ी कणॅफूल तैयार करने को कहा। इसके अलावा, उन्हें बच्चों के खेलने की चीजें हाथी दांत से तैयार करने के लिए कहा गया। गुरु जी के परिवार की कई ऐसी माँगें थीं। सभी मांग बढ़ती च

विश्वकर्मा जी द्वारा तिलोत्तमा की रचना - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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प्रभु विश्वकर्मा जी द्वारा तिलोत्तमा की रचना महाभारत आदिपर्व मे नारदजी द्वारा युधिष्ठिर को कथा सुनाते हैं  कश्यप ऋषि की अनेक पत्नियों में से एक थी दिति। दिति के दो पुत्र थे- 'हिरण्यकशिपु' और 'हिरण्याक्ष'। हिरण्यकशिपु के कुल में निकुंभ नाम का प्रतापी दैत्य हुआ। उसके दो पुत्र थे सुंद और उपसंद। दोनों एक शरीर दो आत्मा की तरह थे और परस्पर अतुल स्नेह भी रखते थे। उन्होंने त्रिलोक पर राज करने की कामना से विन्ध्याचल पर्वत पर घोर तपस्या की । उनके तप तेज से देवता घबरा गए और हमेशा की तरह ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा स्वयं दोनो भाइयों के सामने गए और उनसे वर मांगने को कहा। दोनों ने अमरत्व मांगा। ब्रह्मा ने साफ इन्कार कर दिया। तब दोनों ने कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि एक दूसरे को छोड़कर त्रिलोक में उन्हें किसी से मृत्यु का भय न हो। ब्रह्मा ने कहा – तथास्तु। जैसा कि होना ही था, सुंद-उपसुंद लगे उत्पात करने जिसे देवताओं ने अत्याचार की श्रेणी में गिना और फिर ब्रह्मा के दरबार में गुहार लगा दी। वहाँ भगवान महादेव, वायु सहित, अग्निदेव, चन्‍द्रमा, सूर्य, इन्‍द्र, ब्र