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विश्वकर्मा यज्ञ

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विश्वकर्मा यज्ञ  अनेक पर्वों और अनेक तीर्थस्थलो पर ज्ञानयज्ञ करते रहने की परम्परा दिधॅद्रष्टि वाले ऋषिओ ने चालू की है।  धार्मिक और सामाजिक विपत्तिओ को नष्ट करने के लिए वाजपेय यज्ञ होते थे। विपन्नतास्तु धामिॅक्य सामाजिक्योऽपि ता समाः । अभूतकतुॅ निरताश्र्व वाजपेयेष्टियोजना  ।। इसमे अग्निहोत्र उपरांत ज्ञानयज्ञ की प्रधानता रहती है। कुंभमेले का भी ऎसे ही प्राणवान सम्मेलन के भाती आयोजन करने मे आया था।  देवसंस्कृति मे धमाॅनुष्ठान के साथ सामूहिक यज्ञो का महत्व होता है।  स्कंध पुराण में यज्ञ भगवान के अवतार का वर्णन मिलता है।  यज्ञ पुरूष का भी अवतार परमात्मा ने लिया है।  स्वयंभू मनवन्तर में देवताओ की शक्ति क्षीण हुयी और संसार में सर्वत्र घोर अव्यवस्था फैली थी। ये विपत्तिओ और कष्टों के निवारण के लिए भगवान ने यज्ञ पुरुष का अवतार लिया था।  महर्षि रुचि की पत्नी आकृति के वहा जन्म लिया।  उन्होने समग्र संसार में लुप्त हो चुकी अग्निहोत्र की प्रथा को पुनः जीवित किया। सर्वत्र यज्ञ होने लगे थे। वास्तव में वेद मंत्रों और यज्ञ मंत्रों और यज्ञ शक्ति इतनी प्रबल होती है कि संसार में सुख और समृद्धि द

मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं.....

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जय जय श्रीराम मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... हो रहा साकार , मंदिर श्री हरि आकार मिले है, मनाओ दिवाली, मुझे अवध में श्रीराम मिले है, मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... रख दे शिल्प, सृजन का मुझे अवसर मिला है, चमक रहे बंशीपहाड़ , तराशे पत्थर मे श्रीराम मिले है, मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... सरयू धारा को, तरंग-तरंग राम मंत्र मिले है, भजे तुलसीदास , चौपाईयो मे मुझे श्रीराम मिले हैं, मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... रोशनी चमक रही, उजालों मे दशरथ नंदन मिले हैं, हो रहा शंखनाद , गूंज गूंज अवधनाथ मिले हैं, मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... अविरत भक्ति मे , शबरी, जटायु, हनुमान मिले हैं, रचित रामसेतु, नल-नील मे विश्वकर्मा मिले हैं, मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... वंदन अविनाशी, अभिनंदन सह संघर्ष श्रीराम मिले हैं,  मुख-मुख स्मित बरसे, राजतिलक मे श्रीराम मिले हैं,  मे शिल्पी मुझे मेरे श्री राम मिले हैं..... श्रीराम मंदिर के शिलान्यास प्रसंग में काव्य रचना काव्य रचना - ©️मयूर मिस्त्री