अनंत विश्वकर्मा स्वरूपा

अनंत विश्वकर्मा स्वरूपा *पृथ्वी वायु जल अग्नि आदि आकाशा,* *पंचमहाभूतो मे देव विश्वकर्मा समाता,* *वेद पुराण ग्रंथ प्रकाश प्रखर सुक्ताना,* *अति मनमोहक छवि तुम्हरी विज्ञाना,* *दर्शन महि आवे तेरस पावन तुम्हारा,* *भजन कीर्तन अखंड धुन धरे सुराला,* *पावन प्रतिबिंब मुरत अदभुत विशाला,* *कमंडल वेद सूत्र शिर स्वणॅ मुकुट धराला,* *इन्द्रप्रस्थ वृंदावन दारुकवने मोहक बसाया,* *यमपुरी कुबेरपुरी वरुणपुरी रचाये विशेषा,* *मनु मय त्वष्टा शिल्पी देवज्ञ पुत्र वास्तुज्ञा,* *कला आयुध रचे अनंत काल समाया,* *संज्ञा बहिॅस्मति रिद्धि-सिद्धि पुत्री आत्मजा,* *सूर्य गणनायक प्रियव्रत तुम्हारे जामाता,* *यज्ञ हवन शिल्प भौवन यज्ञात्मा सवॅशा,* *स्तुति वंदना स्तवन गाए भजे धरी ध्याना,* *प्रणेता संचालक तुम्हीं मंत्रद्रष्टा विश्वाना,* *विश्वकर्मा जपे मयुर, साहित्य प्रचार समधमाॅ,* ©️ रचनाकार - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत